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सुकून की चाय

choti si umeed
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Cup-of-tea-and-two-biscuits-547075सुकून की चाय
हमारी रोज़ की ज़िन्दगी कैसी होती है, कही काम पे जाने की जल्दी तो कही बच्चों को स्कूल टाइम पर भेजने की जल्दी, कही बस न छूट जाए , बस पकड़ने की जल्दी. अगर बस छूट गयी तो अगली बस १५ मिन बाद मिलेगी , और इतनी भगम भाग में सुबह- सुबह एक कप सुकून से चाय पीने को मिल जाए तो बस क्या बात है. पिंकी एक मिडिल क्लास फैमिली की सिंपल सी लड़की है  और सुबह-सुबह वो स्कूल जाने को तैयार हो रही है. पास ही के स्कूल में वो पढ़ती है. वो वैसे ही तैयार होती है ,दो गूथ की छोटी उस पर रेड रिबन और उसकी मम्मी रोज़ बाल बनते समय एक ही डायलाग मारती – कितने खराब हो गए है बाल . वो रोज़ यह देखती मम्मी के चूलें पर एक तरफ सब्जी बन रही है तो एक तरफ चाय . इतने में पिंकी के पापा ने आवाज़ दी और बड़े गर्व से कहा करती क्या रहती हो ,अभी तक खाना नहीं बना , ऑफिस के लिए लेट हो रहा हूँ . पिंकी की मम्मी ने जवाब दिया बस २ मिन . वो अपनी मम्मी की यह जल्दी रोज़ देखती और महसूस करती और मन में यह सोचती मम्मी इंसान है रोबोट नहीं और यही सोचते सोचते अपनी साइकिल उठा कर वो जाने लगी तो अचानक उससे याद आया  हिस्ट्री की कॉपी तो वो घर पे ही भूल गयी . वो भागी-भागी घर की तरफ गयी और उसने देखा मम्मी बालकनी में लोगों को देखते हुए सुकून से चाय पे रही है . उनकी आँखों की ऐसी चमक उसने पहले कभी नहीं देखी थी . चमक काम खत्म होने  की और अपने आप को वक़्त देने की .उनके चेहरे पर उस वक़्त ख़ुशी का वो सुकून था मानो उन्होंने बारवी की परीक्षा टॉप कर ली हो . पिंकी को यह सब देख कर बहुत ख़ुशी हुई .कभी आप भी ज़रा २ मिन रुक कर अपनी माँ की सुकून की चाय को ज़रूर देखिएगा. देखिएगा उनकी आँखों की चमक को , चेहरे की ख़ुशी को .
हम हमेशा निकल तो जाते है बड़ी बड़ी चीज़ों में खुशियां ढूंढने को पर असली ख़ुशी तो इन छोटी छोटी चीज़ों में ही मिलती है..
आँचल

सुकून की चाय

हमारी रोज़ की ज़िन्दगी कैसी होती है, कही काम पे जाने की जल्दी तो कही बच्चों को स्कूल टाइम पर भेजने की जल्दी, कही बस न छूट जाए , बस पकड़ने की जल्दी. अगर बस छूट गयी तो अगली बस १५ मिन बाद मिलेगी , और इतनी भगम भाग में सुबह- सुबह एक कप सुकून से चाय पीने को मिल जाए तो बस क्या बात है. पिंकी एक मिडिल क्लास फैमिली की सिंपल सी लड़की है  और सुबह-सुबह वो स्कूल जाने को तैयार हो रही है. पास ही के स्कूल में वो पढ़ती है. वो वैसे ही तैयार होती है ,दो गूथ की छोटी उस पर रेड रिबन और उसकी मम्मी रोज़ बाल बनते समय एक ही डायलाग मारती – कितने खराब हो गए है बाल . वो रोज़ यह देखती मम्मी के चूलें पर एक तरफ सब्जी बन रही है तो एक तरफ चाय . इतने में पिंकी के पापा ने आवाज़ दी और बड़े गर्व से कहा करती क्या रहती हो ,अभी तक खाना नहीं बना , ऑफिस के लिए लेट हो रहा हूँ . पिंकी की मम्मी ने जवाब दिया बस २ मिन . वो अपनी मम्मी की यह जल्दी रोज़ देखती और महसूस करती और मन में यह सोचती मम्मी इंसान है रोबोट नहीं और यही सोचते सोचते अपनी साइकिल उठा कर वो जाने लगी तो अचानक उससे याद आया  हिस्ट्री की कॉपी तो वो घर पे ही भूल गयी . वो भागी-भागी घर की तरफ गयी और उसने देखा मम्मी बालकनी में लोगों को देखते हुए सुकून से चाय पे रही है . उनकी आँखों की ऐसी चमक उसने पहले कभी नहीं देखी थी . चमक काम खत्म होने  की और अपने आप को वक़्त देने की .उनके चेहरे पर उस वक़्त ख़ुशी का वो सुकून था मानो उन्होंने बारवी की परीक्षा टॉप कर ली हो . पिंकी को यह सब देख कर बहुत ख़ुशी हुई .कभी आप भी ज़रा २ मिन रुक कर अपनी माँ की सुकून की चाय को ज़रूर देखिएगा. देखिएगा उनकी आँखों की चमक को , चेहरे की ख़ुशी को .

हम हमेशा निकल तो जाते है बड़ी बड़ी चीज़ों में खुशियां ढूंढने को पर असली ख़ुशी तो इन छोटी छोटी चीज़ों में ही मिलती है..

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