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छोटी सी उम्मीद
सूरज की पहली किरण देखने का कुछ और ही मज़ा है , सुबह-सुबह बगीचे में टहलने का कुछ और ही मज़ा है, रात में छत से तारों को देखने का कुछ और ही मज़ा है, न्यू ईयर पर रेसोलुशन लेने का कुछ और ही मज़ा है.
बंटी की सुबह की शुरुआत भी कुछ ऐसी ही थी, ज्यादा नहीं बस थोड़ा ही फर्क था , आज कल हम टेक्नोलॉजी फ्रेंडली जो हो गए है . सूरज की पहली किरण की जगह मोबाइल का मस्ज है, बगीचे की जगह घर का कारपेट पर हाँ रेसोलुशन लेने का रिवाज़ आज भी वैसा ही है ,फिर उन्हें तोड़ने का गिल्ट भी और फिर यह सोचने का की कोई बात नहीं अगले साल फिर एक रेसोलुशन लेंगे और ज़रूर उससे पूरा करेंगे. बंटी भी और लड़को जैसा ही था शैतान या फिर कहु की नटखट . अपनी शरारतों को छुपाकर उससे भी अपनी मम्मी को पागल बनाने में बड़ा ही मज़ा आता था . हाँ यह अलग बात है मम्मी सब समझ जाती थी फिर भी पापा की डांट से उससे बचा लेती थी. पहले तो सिर्फ इंजीनियरिंग कॉलेजेस में ही सेमेस्टर सिस्टम होता था आजकल कॉमर्स कॉलेजेस में भी यही रिवाज़ है . बंटी के फर्स्ट सेमेस्टर का रिजल्ट आया है. एकाउंटेंसी में कुछ ख़ास कमाल नहीं कर पाया. पापा को रिजल्ट बताने से डर लग रहा था जैसे हम सब को लगता है, और फिर पापा बड़ी कंपनी में अकाउंटेंट जो थे.बंटी के चेहरे के भाव देखते हुए पापा ने तुरंत पुछा- रिजल्ट आ गया है क्या ? बंटी ने डरते डरते मार्कशीट पापा को दिखाई और बोला मैंने इस साल न्यू ईयर रेसोलुशन यही लिया है पापा अगली बार एकाउंटेंसी में बहुत अच्छे नंबर आएंगे. पापा ने मार्क शीट एक बार फिर गौर से देखीं और बंटी की पीठ थपथपाते हुए कहा शाबाश . बंटी ने बड़े ही कफुशन में पुछा मुझे तो लगा आप डांटेंगे तब पापा ने कहा बेटा मुझे भी लगा था तुम फैल हो जाओगे . यह तो हमारी उम्मीदों से कही ऊपर है..
कभी कभी ऐसे कुछ अलग से रिएक्शन का अलग ही मज़ा है.
उम्मीद हमेशा बहुत बड़ी हो ऐसा ज़रूरी नहीं,
छोटी छोटी उम्मीदें भी कुछ कम तो नहीं.
कभी कोशिश करके देखियेगा इन् छोटी छोटी उम्मीदों को जानने की खुद की भी और दूसरों की भी.
इन् उम्मीदों को जानने का भी कुछ और ही मज़ा है.
आँचल.
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